लौ मुहब्बत की जलाना चाहता हूँ..!
नाज़नीन नुमाइश यू ना कर ,
नदी से जल सूखने मत देना, पेड़ से साख गिरने मत देना,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
दूहौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
खुशियों के पल पल में रंग भर जाए,
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
*यह समय के एक दिन, हाथों से मारा जाएगा( हिंदी गजल/गीतिका)*
रोशनी से तेरी वहां चांद रूठा बैठा है
प्रकृति का अंग होने के कारण, सर्वदा प्रकृति के साथ चलें!
गौ नंदिनी डॉ विमला महरिया मौज
वफ़ा को तुम हमारी और कोई नाम मत देना
हर एक सब का हिसाब कोंन रक्खे...