निर्लज्ज चरित्र का स्वामी वो, सम्मान पर आँख उठा रहा।
कर्त्तव्य पथ पर अडिग हूँ मैं, और रणक्षेत्र वो सज़ा रहा, विप्लव तान के बीच फंसी, और शंखनाद से वो बुला रहा। कभी भेदा था, जिसने हृदय को, वही भेदी...
Hindi · Book 2 · Manisha Manjari · Manisha Manjari Hindi Poem · कविता · मनीषा मंजरी