■ अभाव, तनाव, चुनाव और हम
#सामयिक_रचना- ■ क्या खाक़ मनाएं दीवाली...? 【प्रणय प्रभात】 बरसात बिना गुम हरियाली। सूखी शाखें, सूखी डाली।। ऊपर से विकट महामारी। जिससे सारी दुनिया हारी।। लाचार करोड़ों कामगार। बेबस श्रम करता...
Hindi · प्रणय की कविता · विडम्बना · सम सामयिक · हिंदुस्तान