Subject- मां स्वरचित और मौलिक जन्मदायी मां
Subject- मां
स्वरचित और मौलिक
जन्मदायी मां
अपने शरीर के दो हिस्से करके
धरती पर हमको लाती है मां,
नौ माह कोख में अपनी
नाल से हमें सिचंती है मां,
जी घबराए, जी मितलाए चाहे
बदन दर्द में भी मुस्कुराती है मां,
बूंद खून की पाले अपने गर्भ में
सुरक्षादात्री कहलाती है मां,
हमें लाने खातिर मरकर जी उठती
अपने जिस्म से अलग हमें करती है मां,
हमारे लिये अपनी हर ईच्छा दबाती गर्भस्थ शिशु को ऐसे पालती है मां,
दिन रात हमारे लिये मेहनत करती
थककर बहुत बार भूखी भी सो जाती है मां,
भोर फटते ही हमारे लिये जग जाती
स्वयं लेकिन दोपहर बाद नहाती है मां,
मिले रब तो मांगे सिर्फ खुशी हमारी
मुस्कान देखकर हमारी संतुष्ट है मां,
मां का विकल्प नहीं इस जग में
जगत जननी पालनहारी है मां,
हर हाल में मुस्कुराकर वात्सल्य बांटे हर घर को बनाती जन्नत है मां।
Dr.Meenu Poonia
Jaipur Rajasthan
Dr.Meenu Poonia