SP56 एक सुधी श्रोता
SP56 एक सुधी श्रोता
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एक सुधी श्रोता ने पढ ली समझो कविता हुई सार्थक
बहुत-बहुत आभार आपका लगता लिखना सफल हो गया
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गहन ताप में बनता हीरा होता उसका मोल नहीं है
जिस जौहरी ने पहचाना उसको इस दुनिया ने माना
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हम तो हैं उसे पथ के मुसाफिर जिसकी मंजिल हमें पता है
जितनी दुर्गम डगर हमारी उतना ही हौसला बड़ा है
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जब तक कलम में बची है स्याही सतत चलेगी सत्य लिखेगी
ना कुछ पाने की चाहत है ना कुछ खोने का ही डर है
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यह शीशे का शहर है माना और तिजारत है अक्सो की
हम भी जिद पर अड़े हुए हैं सुधियों के सपने बाटेंगे
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तवsp 56