sp125 मां और पिता
sp125 मां और पिता
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मां और पिता का साथ निभाए उनको हम सपूत कहते हैं
जो वृद्धों को घर से निकाले उनको हम कपूत कहते हैं
कलम नमन किन्नरों को करती जिन्होंने करवाई थी शादी
जो दुर्बल का साथ निभाए उनको देवदूत कहते हैं
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भावनाओं पर भी अगर स्वार्थ का पहरा होगा
जख्म जो शब्द का होगा बड़ा गहरा होगा
तीर तलवार और भालो की बात मत करिए
वह भी समझेगा भले गूंगा या बहरा होगा
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अनुज मित्र साथ में पधारे रौनक बढ़ी हमारे घर की
स्मृतियों के खुले खजाने देवल कुंवर बेचैन के चर्चे
विनीत कुमार मनीष कुमार यादों की खोल दी पिटारी
अपनों से अपनों की बातें हम हैं समय के भी आभारी
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जिसको समझ रहे थे हम वह अपना है
वह भी तो अब अपना नहीं रहा प्यारे
चुपके से अपनी कोरों से निकल गया
आंखों में वह सपना नहीं रहा प्यारे
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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