sp122 दुनिया एक मुसाफिरखाना
sp122 दुनिया एक
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दुनिया एक मुसाफिर खाना लगा हुआ है आना जाना
यहाँ मुसाफिर हैं हम सारे तय है सबका ठौर ठिकाना
विषय भोग तन का आकर्षण जीवन का आधार नही है
माया मोह जनित ये दुनिया ही सारा संसार नही है
इसमे जो भी डूबा उसको पड़ता खुद ही मोल चुकाना
दुनिया एक मुसाफिर खाना लगा हुआ है आना जाना
दुनिया एक मुसाफिर खाना लगा हुआ है आना जाना
अच्छा समय गुजर जाता जब मिल जाते साथी मनचाहे
और सफर तन्हा होने पर दूभर होता वक़्त बिताना
दुनिया एक मुसाफिर खाना लगा हुआ है आना जाना
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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