sp107 पीठ में खंजर घुसे
पीठ में खंजर घुसे
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पीठ में खंजर घुसे कितने मुझे मालूम नहीं
तीर जो दिल पर लगा वो जिंदगी ही ले गया
उम्र भर जिसको तराशा और बनाया देवता
जिंदगी की सारी खुशियां बेवफा ही ले गया
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हम जमाने की पीर लिखते हैं
सीधी सादी नजीर लिखते हैं
दौर आया है अजब लेखन में
लोग खुद को कबीर लिखते हैं
कोई गुजरी कहानी समझ ले तो
कोई गिला हमको नहीं होता
भूखे को नहीं देते हैं जो खाने को
हम तो उनको फकीर लिखते हैं
दौर में कई भामाशाह अब भी हैं
मुश्किल में दिखते हैं वह जिंदा दिल
मान मानवता का रखा जिसने
उसको सबसे अमीर लिखते हैं
आज का दौर बेबसी का है
साथ कोई नहीं कभी देता
जो निभाते हैं दोस्ती सच्ची
उनका जिंदा जमीर लिखते हैं
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सुश्री सितारा पुत्री महेश बाबू के लिए फीस का एक करोड़ दान में
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आज के युग में ऐसी सोच रखने वालों का शत-शत वंदन
जीवन में सहज सोपान मिले करती है कलम भी अभिनंदन
यह सोच तुम्हारी तय एक दिन इस आसमान को छू लेगी
पुलकित है माता सरस्वती हर्षित भारत का जन गण मन
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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