शुद्ध हिंदी माध्यम से पढ़े एक विज्ञान के विद्यार्थी का प्रेमप
आज की तरह तुम ना मिलो दोस्त में कोई भीखारी नहीं हूं ?
उल्फ़त .में अज़ब बात हुआ करती है ।
"बुलंद इरादों से लिखी जाती है दास्ताँ ,
#हा ! प्राणसखा . . . . . !
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
रहती जिनके सोच में, निंदा बदबूदार .
हिंदी दलित साहित्य में बिहार- झारखंड के कथाकारों की भूमिका// आनंद प्रवीण
जब हृदय में ..छटपटा- जाती.. कोई पीड़ा पुरानी...
मैं मासूम "परिंदा" हूँ..!!
नाथ मुझे अपनाइए,तुम ही प्राण आधार