हूँ वो शाइर
हूँ वो शाइर जो अजाबों की अज़ल लिखती हूँ
अश्कों के हर्फों से मैं दर्दे ग़ज़ल लिखती हूँ।
तुम मुझे चाहे समझ लेना धरा की माटी
मैं तो तुमको ही मेरे दिल का कमल लिखती हूँ।
मुझसे माना न जुड़े कोई भी जज़्बात तेरे
तुम को खुद के लिए अल्लाह का फ़ज़ल लिखती हूँ।
न मिटूँ मैं जो मुहब्बत में भला क्या है रखा
कुर्बां खुद तेरी हिफाज़त का दखल लिखती हूँ
मैं तो डूबती गयी इश्कों के समन्दर में सनम
तेरी तारीफों का यारों से शगल लिखती हूँ
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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