माँ वीणा वरदायिनी, बनकर चंचल भोर ।
डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक
मिलने को उनसे दिल तो बहुत है बेताब मेरा
कोई किसी के लिए जरुरी नहीं होता मुर्शद ,
आँखों मे नये रंग लगा कर तो देखिए
ग़म मौत के ......(.एक रचना )
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो।
नम आंखों से ओझल होते देखी किरण सुबह की
मौत के बाज़ार में मारा गया मुझे।
अर्थहीन हो गई पंक्तियां कविताओं में धार कहां है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
Why does Not Heaven Have Visiting Hours?
निश्छल प्रेम के बदले वंचना
इक चमन छोड़ आये वतन के लिए
आप हँसते हैं तो हँसते क्यूँ है
🥀 * गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
हमने तुम्हें क्या समझा था,