Poetry By Satendra Tag: कविता 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Poetry By Satendra 22 Apr 2022 · 1 min read आसान नहीं होता है पिता बन पाना आसान नहीं होता है पिता बन पाना मुश्किलों में होकर भी खुद को मजबूत दिखाना स्वयं कष्ट सहे पर परिवार से सब छुपाये परिवार कष्ट में हो तो एकदम बेचैन... “पिता” - काव्य प्रतियोगिता एवं काव्य संग्रह · कविता 8 6 688 Share Poetry By Satendra 27 Mar 2022 · 1 min read ढाई दिन का प्यार हवा के झोंके की तरह एक लड़की उस दिन आई ना मैं वाकिफ़ कि क्या उसमे अच्छा, क्या उसमे बुराई फ़िर वह बोली आप बड़े हसीन लगते हो हम अजनबियों... Hindi · कविता 233 Share Poetry By Satendra 21 Mar 2022 · 1 min read कविता का महत्त्व कविता से पहचान बनी है, कविता मेरा काम बनी है पहले मेरे दिन बोरिंग थे, अब मेरी हर शाम बनी है दर्द रहे तो घट जाता है, हर्ष जरा सा... Hindi · कविता 282 Share Poetry By Satendra 20 Mar 2022 · 1 min read आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए क्यों न आज घर को हम बृज धाम बनाए आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए...... फ़िर बचपन की तरह कोई दोस्त घर आए कुछ नहीं है कहकर मुट्ठी... Hindi · कविता 214 Share Poetry By Satendra 15 Mar 2022 · 2 min read पगडंडी डण्डी चलकर के... फ़िर से गिर कर उठ जाऊ जो, अब ऐसी मुझमें दरकार कहा। पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।। सुषमा ने उस मुख की तेरे , आभा... Hindi · कविता 1 214 Share Poetry By Satendra 10 Mar 2022 · 1 min read वैश्यावृत्ति : अपमान या एहसान ये चेहरे की उदासी और चुभन बता रही है किस तरह वो अपनी मजबूरियां छुपा रही है जो करना पड़ रहा है अपनी आबरू को नीलाम और हो गई हर... Hindi · कविता 2 2 290 Share Poetry By Satendra 7 Mar 2022 · 1 min read वो औरत है उसके लिए सब आसान है वो औरत है उसके लिए सब आसान है....... १// क्योंकि उसके हौसले उसकी जान है कभी घर छोड़ा कभी प्रेमी कभी छोड़ दिया परिवार ग़म सहे और हँसते हँसते बना... Hindi · कविता 424 Share Poetry By Satendra 26 Feb 2022 · 2 min read नन्ही सी जान ❣️ क्यों पेट में ही मार दी गई वो नन्ही सी जान..... जो थी बेबस और पूरी तरह अनजान कि क्या उसका कसूर था अभी तो निर्माण भी न भरपूर था... Hindi · कविता 378 Share Poetry By Satendra 25 Feb 2022 · 1 min read अधिकार या अतिचार युद्ध का जो कुछ दिनों से बज रहा मृदंग जीतने की चाह में हुई शांति सब भंग अमन चैन को भूल, क्रूर हो गया हैवान झुका रहा करने पूरे द्वेष... Hindi · कविता 286 Share