Poetry By Satendra 12 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Poetry By Satendra 18 Jun 2022 · 1 min read इस डर को मन से कर बाहर ,तुम शक्तिपुंज रणवीर बनो इस डर को मन से कर बाहर ,तुम शक्तिपुंज रणवीर बनो साहस की नौका पर निकलो ,दो पल को अब गम्भीर बनो मांझी भी खुद और चंपू खुद, तुम खुद... Hindi 168 Share Poetry By Satendra 24 May 2022 · 1 min read होती शाम .... होती एक शाम सुहानी सी ,मस्तानी सी, दीवानी सी बन जाती जब तुम महबूबा ,न रहती आज सखानी सी पहन के आती सूट वही ,जो दिया था मैंने तोहफे मे... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 252 Share Poetry By Satendra 9 May 2022 · 1 min read मैं और मेरी दशा क्या बता दूँ मैं तुम्हें , एक जरा सी आश मे हू खो गया खुद मे कहीं ,मुकुर की तलाश में हूँ नकाबों का दौर है ये , झूठ ने... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 137 Share Poetry By Satendra 22 Apr 2022 · 1 min read आसान नहीं होता है पिता बन पाना आसान नहीं होता है पिता बन पाना मुश्किलों में होकर भी खुद को मजबूत दिखाना स्वयं कष्ट सहे पर परिवार से सब छुपाये परिवार कष्ट में हो तो एकदम बेचैन... “पिता” - काव्य प्रतियोगिता एवं काव्य संग्रह · कविता 8 6 687 Share Poetry By Satendra 27 Mar 2022 · 1 min read ढाई दिन का प्यार हवा के झोंके की तरह एक लड़की उस दिन आई ना मैं वाकिफ़ कि क्या उसमे अच्छा, क्या उसमे बुराई फ़िर वह बोली आप बड़े हसीन लगते हो हम अजनबियों... Hindi · कविता 232 Share Poetry By Satendra 21 Mar 2022 · 1 min read कविता का महत्त्व कविता से पहचान बनी है, कविता मेरा काम बनी है पहले मेरे दिन बोरिंग थे, अब मेरी हर शाम बनी है दर्द रहे तो घट जाता है, हर्ष जरा सा... Hindi · कविता 281 Share Poetry By Satendra 20 Mar 2022 · 1 min read आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए क्यों न आज घर को हम बृज धाम बनाए आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए...... फ़िर बचपन की तरह कोई दोस्त घर आए कुछ नहीं है कहकर मुट्ठी... Hindi · कविता 213 Share Poetry By Satendra 15 Mar 2022 · 2 min read पगडंडी डण्डी चलकर के... फ़िर से गिर कर उठ जाऊ जो, अब ऐसी मुझमें दरकार कहा। पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।। सुषमा ने उस मुख की तेरे , आभा... Hindi · कविता 1 213 Share Poetry By Satendra 10 Mar 2022 · 1 min read वैश्यावृत्ति : अपमान या एहसान ये चेहरे की उदासी और चुभन बता रही है किस तरह वो अपनी मजबूरियां छुपा रही है जो करना पड़ रहा है अपनी आबरू को नीलाम और हो गई हर... Hindi · कविता 2 2 289 Share Poetry By Satendra 7 Mar 2022 · 1 min read वो औरत है उसके लिए सब आसान है वो औरत है उसके लिए सब आसान है....... १// क्योंकि उसके हौसले उसकी जान है कभी घर छोड़ा कभी प्रेमी कभी छोड़ दिया परिवार ग़म सहे और हँसते हँसते बना... Hindi · कविता 423 Share Poetry By Satendra 26 Feb 2022 · 2 min read नन्ही सी जान ❣️ क्यों पेट में ही मार दी गई वो नन्ही सी जान..... जो थी बेबस और पूरी तरह अनजान कि क्या उसका कसूर था अभी तो निर्माण भी न भरपूर था... Hindi · कविता 377 Share Poetry By Satendra 25 Feb 2022 · 1 min read अधिकार या अतिचार युद्ध का जो कुछ दिनों से बज रहा मृदंग जीतने की चाह में हुई शांति सब भंग अमन चैन को भूल, क्रूर हो गया हैवान झुका रहा करने पूरे द्वेष... Hindi · कविता 285 Share