मनोज कर्ण Tag: हे गृहस्थ 1 post Sort by: Latest Likes Views List Grid मनोज कर्ण 25 Jan 2025 · 2 min read हे गृहस्थ..! हे गृहस्थ ! (छंदमुक्त काव्य) ::::::::::::::::::: हे गृहस्थ ! मन मलीन क्यों है तेरा, नस खींचना नहीं है तुझे नागा साधुओं की तरह , और न ही जीते जी पिंडदान... Hindi · Hindi Poem ( हिन्दी कविता ) · कविता · छंदमुक्त काव्य · हे गृहस्थ 4 417 Share