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इस डर को मन से कर बाहर ,तुम शक्तिपुंज रणवीर बनो
Poetry By Satendra
होती शाम ....
Poetry By Satendra
मैं और मेरी दशा
Poetry By Satendra
आसान नहीं होता है पिता बन पाना
Poetry By Satendra
ढाई दिन का प्यार
Poetry By Satendra
कविता का महत्त्व
Poetry By Satendra
आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए
Poetry By Satendra
पगडंडी डण्डी चलकर के...
Poetry By Satendra
वैश्यावृत्ति : अपमान या एहसान
Poetry By Satendra
वो औरत है उसके लिए सब आसान है
Poetry By Satendra
नन्ही सी जान ❣️
Poetry By Satendra
अधिकार या अतिचार
Poetry By Satendra