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एक मुक्तक
संजीव शुक्ल 'सचिन'
बचपन
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#राजनैतिक_आस्था_ने_आज_रघुवर_को_छला_है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#गंग_दूषित_जल_हुआ।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
चाह थी आप से प्रेम मिलता रहे, पर यहांँ जो मिला वह अलौकिक रहा
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#हे_कृष्णे! #कृपाण_सम्हालो, #कृष्ण_नहीं_आने_वाले।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
अब छंद ग़ज़ल गीत सुनाने लगे हैं हम।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
आदि अनंत अनादि अगोचर निष्कल अंधकरी त्रिपुरारी।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
आदि अनंत अनादि अगोचर निष्कल अंधकरी त्रिपुरारी।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#कलिकाल
संजीव शुक्ल 'सचिन'
अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
चलो चाय पर करने चर्चा।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
पीर मिथ्या नहीं सत्य है यह कथा,
संजीव शुक्ल 'सचिन'
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#वर_दक्षिण (दहेज)
संजीव शुक्ल 'सचिन'
संवेदनहीनता
संजीव शुक्ल 'सचिन'
वेदना
संजीव शुक्ल 'सचिन'
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
यदि चाहो मधुरस रिश्तों में
संजीव शुक्ल 'सचिन'
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
शूल ही शूल बिखरे पड़े राह में, कण्टकों का सफर आज प्यारा मिला
संजीव शुक्ल 'सचिन'
ढूँढ़ रहे शमशान यहाँ, मृतदेह पड़ा भरपूर मुरारी
संजीव शुक्ल 'सचिन'
प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
होली गीत
संजीव शुक्ल 'सचिन'
फागुन (मतगयंद सवैया छंद)
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#राम_भला_कब_दूर_हुए_है?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
स्वागत है इस नूतन का यह वर्ष सदा सुखदायक हो।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
स्वागत है इस नूतन का यह वर्ष सदा सुखदायक हो।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
चुप रहना भी तो एक हल है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
ज्ञानवान दुर्जन लगे, करो न सङ्ग निवास।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#लाश_पर_अभिलाष_की_बंसी_सुखद_कैसे_बजाएं?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#संबंधों_की_उधड़ी_परतें, #उरतल_से_धिक्कार_रहीं !!
संजीव शुक्ल 'सचिन'
सृजन कुंज के स्थापना दिवस पर कुंज एवं कुंज परिवार को हार्दिक
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#दुर्दिन_हैं_सन्निकट_तुम्हारे
संजीव शुक्ल 'सचिन'
श्रम करो! रुकना नहीं है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
श्वेत बस इल्बास रखिये और चलिए।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
ज़िन्दगी से आस रखिये और चलिये।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
ज़माने को समझ बैठा, बड़ा ही खूबसूरत है,
संजीव शुक्ल 'सचिन'
बोलो_क्या_तुम_बोल_रहे_हो?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#है_व्यथित_मन_जानने_को.........!!
संजीव शुक्ल 'सचिन'
विघ्न-विनाशक नाथ सुनो, भय से भयभीत हुआ जग सारा।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
अद्य हिन्दी को भला एक याम का ही मानकर क्यों?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
बिटिया घर की ससुराल चली, मन में सब संशय पाल रहे।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
बृद्ध हुआ मन आज अभी, पर यौवन का मधुमास न भूला।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
आप सभी को रक्षाबंधन के इस पावन पवित्र उत्सव का उरतल की गहराइ
संजीव शुक्ल 'सचिन'
शिव का सरासन तोड़ रक्षक हैं बने श्रित मान की।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
रूप अलौकिक हे!जगपालक, व्यापक हो तुम नन्द कुमार।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
#काहे_ई_बिदाई_होला_बाबूजी_के_घर_से?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
किन्तु क्या संयोग ऐसा; आज तक मन मिल न पाया?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
पाप बढ़ा वसुधा पर भीषण, हस्त कृपाण कटार धरो माँ।
संजीव शुक्ल 'सचिन'