“ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूर्वाग्रसित से अलंकृत ना करें “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ” =================================== आलोचना ,प्रशंसा ,टीका -टिप्पणी ,समालोचना ,व्यंग और नौ रस के बिना साहित्य अधूरी मानी जाती है ! ये कभी कविता ,लेख या कहानिओं...
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