कुमार अविनाश केसर 78 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 2 कुमार अविनाश केसर 22 Feb 2022 · 1 min read जनता ज़िंदाबाद हो गईल!! जनता ज़िंदा लाश हो गईल, घोड़वन स के घास हो गईल. जिनगी सब के झंड बनल बा, नेतवन के घमंड चढ़ल बा. जनधन योजना सबकर घर के धनवा धो गईल.... Bhojpuri · कविता 1 205 Share कुमार अविनाश केसर 2 Sep 2022 · 1 min read कैसे प्रणय गीत लिख जाऊँ कैसे मैं प्रणय गीत लिख जाऊँ =================== जलता है संसार! कैसे मैं प्रणय गीत लिख जाऊँ? मानवता की हार ! कैसे मैं प्रणय गीत लिख जाऊँ? होठों पर चित्कार,हाय! आँखों... Hindi 224 Share कुमार अविनाश केसर 16 Mar 2022 · 1 min read सारा जगत बेचारा रे... नूपुर छनके, मधुर ध्वनि से, कर्ण बहे रसधारा रे...। विविध रूपों में, तू है छलका, सुंदर सहज सितारा रे...। दसों द्वार से, जब तू झाँके, पुलकित तन मन सारा रे...।... Hindi · कविता 174 Share कुमार अविनाश केसर 2 Mar 2022 · 1 min read तेरी याद सीने में है तेरी याद सीने में है तेरे जाने का ग़म अबतक मेरे सीने में है। तेरा वो खुद्दार सितम अबतक मेरे जीने में है, रफ्ता-रफ्ता तेरी साँसों-सी महकने लगी है। तेरी... Hindi · गीत 178 Share कुमार अविनाश केसर 28 Dec 2022 · 1 min read मेरी सिरजनहार अजस्र! तुम सृजन से कोमल, प्रलय से कठोर, अतृप्त छोर! कौन है तुल्य? तेरा अतुल्य! 'यस्याः पतरम् नास्ति' परातीता! अब कौन 'अस्ति'? कौन 'नास्ति'? तरु-तृण के तुहीन-कणों से- तरल! स्रोतस्वी... Hindi 206 Share कुमार अविनाश केसर 25 Mar 2022 · 1 min read ठहरा आदमी भी एक सफ़र पे ही रवाना है चले आओ, तुम्हें मंज़र, जहाँ का, हम दिखाते हैं। सनम! दस्तूर, तुमको इस जहाँ का हम दिखाते हैं। यहाँ हर दिल में खंजर है, यहाँ हर दिल में काँटा है।... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 187 Share कुमार अविनाश केसर 28 Jan 2022 · 1 min read जनता ज़िंदाबाद हो गईल जनता ज़िंदा लाश हो गईल, घोड़वन स के घास हो गईल. जिनगी सब के झंड बनल बा, नेतवन के घमंड चढ़ल बा. जनधन योजना सबकर घर के धनवा धो गईल.... Hindi · कविता 1 174 Share कुमार अविनाश केसर 10 Feb 2022 · 1 min read एक दीया अपने लिए ये खामोश, काली रातें, क्यों घूरती हैं मुझको! एक नन्हा -सा दीया तो हमने अपने लिए जलाया था। Hindi · शेर 1 159 Share कुमार अविनाश केसर 18 Feb 2022 · 1 min read ज़िन्दगी मैंने तुम से चाहा था गगन भर प्यार! यह कैसी किस्मत की मार!! तूने मुझसे ही ठान दी रार!! कहां तो चाहा था- आसमान के कैनवास पर, बिखरे रंगों के... Hindi · कविता 1 164 Share कुमार अविनाश केसर 1 Feb 2022 · 1 min read माहताब भी कत्लेआम कर जाएगा! तुम रोज इसमें इस तरह झाँका ना करो, ये आइना है टूट कर बिखर जाएगा। लबों पे अपने दर्द की हिचकियाँ न लाना कभी, सुन के मंजर ये सारा दहल... Hindi · शेर 1 156 Share कुमार अविनाश केसर 2 Mar 2022 · 1 min read बेटियों के प्रति बेटियों के प्रति मैं, कैसे भूल जाऊँ कि तुमने उड़ेल रखे थे - दर्द! अपने सारे। हथेली पर रक्खे नमक की तरह। जो अब चू रहे हैं - नमकीन पानी... Hindi · कविता 177 Share कुमार अविनाश केसर 7 Mar 2022 · 1 min read कल और आज कभी ईद की इबादतों में हम होते थे शरीक़, अब वो ईद में हमें अपने घर बुलाते हैं। कभी दीवारों पर लिखी थी इबारतें जो हमने, फुरसत में बैठकर आजकल... Hindi · शेर 175 Share कुमार अविनाश केसर 11 Feb 2022 · 1 min read प्रश्न तुम कहाँ रहते हो ? इतने दिन! पाँच साल लंबे दिन ! पाँच साल लंबी रातें! किस खोह में बैठते हो? नंगे विचारों, खोखले हाथों, शायराना अंदाज़ों वाले वादों के... Hindi · कविता 1 155 Share कुमार अविनाश केसर 6 Mar 2022 · 1 min read क्षण-मुक्त तुम्हें- कहाँ देखूँ ? तुम खो गए कहीं.... जब-जब देखना चाहा! तुम्हें सुन नहीं पाता- सुनने का स्वांग करके। कभी यूँ ही... सन्नाटे में.... चिहुँक उठता हूँ। तुम, शायद कुछ... Hindi · कविता 164 Share कुमार अविनाश केसर 12 Mar 2022 · 1 min read कैनवास में माँ का चेहरा कल रात... किसी ने... खटखटाया द्वार! अनमने... ऊँघते... डगमगाते... खोल दिए.. मैंने - द्वार! बहुत देर तक.. कोई न झाँका!! देखा मैंने - मैंने ही देखा द्वार पार! बचपन खड़ा... Hindi · कविता 1 1 174 Share कुमार अविनाश केसर 6 Mar 2022 · 1 min read शब्द और भाव शब्द- तुम तक.... नहीं पहुंचे। जब भी... उठे दर्द! कहीं भीतर से। आवाज पहुँची.... शब्द नहीं पहुंचे!! जब कभी... नाच उठा... मयूर मन। खिल उठे... दिग दिगंत... मन प्राण गूंज... Hindi · कविता 152 Share कुमार अविनाश केसर 30 Jan 2022 · 1 min read शर्तों पर ज़िन्दगी आग सुलगती रहे तो ठीक है, ज़ज़्बात उफनते रहें तो ठीक है, जिंदगी का क्या ठिकाना! या रब! शर्तों पर ही सही, चलती रहे तो ठीक है!! Hindi · मुक्तक 1 142 Share कुमार अविनाश केसर 28 Aug 2022 · 1 min read ये जो बारिश है अभी हुआ मेघ- धारासार... मूसलाधार... लगा - जैसे- छिद गया हो.... एक बड़ा- सा.. बहुत बड़ा- सा... गुब्बारा! जैसे - पानी से भरे... किसी बड़े से..... धूसर पॉलिथीन की.... पेंदी... Hindi 161 Share कुमार अविनाश केसर 5 Apr 2022 · 1 min read प्रेम ने कहा प्रेम ने एक दिन मुझसे ऐसा कहा, उम्र चाहत की मुझको बड़ी चाहिए। ज़िन्दगी की अनुभूति मुझसे मिली, दिल की दौलत हमें हर घड़ी चाहिए। Hindi · मुक्तक 143 Share कुमार अविनाश केसर 6 Apr 2022 · 1 min read प्रेम में मिलन प्रेम में मन मिले, तन मिले न मिले, मन मगन हो झूमेगा घड़ी हर घड़ी। साथ दिल का मिले गर भरी ज़िन्दगी, धड़कनें गुनगुनाएँ घड़ी दर घड़ी। फूल के पराग... Hindi · मुक्तक 156 Share कुमार अविनाश केसर 30 Jan 2022 · 1 min read लोग ये जो सड़कों पर चलते हैं हाथ हिलाते हुए लोग, महफ़िलों में बेवज़ह, बेदिल हाथ मिलाते हुए लोग, अनजाने, अनसुलझे, बेदम, बेगाने, दीवाने लोग, कौन जाने कहाँ रुकेंगे ये रिश्तों... Hindi · मुक्तक 1 142 Share कुमार अविनाश केसर 7 Mar 2022 · 1 min read चमन में फूल खिलते रहें सिलसिले यूँ ही चलते रहें, हाथों से हाथ मिलते रहें, हम रहें, न रहें जहाँ में लेकिन चमन में फूल यूँ ही खिलते रहें। Hindi · शेर 177 Share कुमार अविनाश केसर 10 Mar 2022 · 1 min read नारी विधाता, जब समेट नहीं पाया... अपने अंक में.... संसार! प्रकृति ने उठा लिए- सारे भार!! स्वयं जब दबने लगी.... बिखरने लगी... स्वयं ही सिहरने लगी.... तब खुद को कर दिया... Hindi · कविता 159 Share कुमार अविनाश केसर 8 Apr 2022 · 1 min read निशानी छोड़ जायेंगे चले हैं ज़िन्दगी में हम दीया एक प्यार का लेकर उजाले अपनी यादों के कहीं तो छोड़ जाएंगे। तुम अपनी राह पे चलना, हम अपनी राह चलते हैं. निशानी पाँव... Hindi · मुक्तक 1 151 Share कुमार अविनाश केसर 31 Mar 2022 · 1 min read अदावत में मेरे हमदम तड़पता छोड़ जाते हो चले जाते हो मुड़कर तुम, तड़पता छोड़ देते हो। तम्मनाओं को मेरे तुम, तड़पता छोड़ जाते हो। अधूरे ख़्वाब हैं मेरे, ज़मीं पे ही सरकते हैं। ख़्वाबों में भी तुम... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 2 135 Share कुमार अविनाश केसर 25 Mar 2022 · 1 min read तुम क्या जानो तुम क्या जानो? मेरे भीतर, क्या-क्या पलता रहता है! इश्क़, दर्द या प्यार-मोहब्बत? क्या-क्या चलता रहता है! उनकी मजबूरी से मेरी आँतें ऐंठा करती हैं, जोड़ी भर आँखों की रातें,... Hindi · कविता 1 124 Share कुमार अविनाश केसर 7 Apr 2022 · 1 min read तुम्हारा सच भले पुतवा दो दीवारें, हज़ारों रंग रोगन से, ईंटें चीख के कहतीं, मकाँ का दर्द क्या-क्या है! माना तुम छिपाने में बहुत माहिर भी हो लेकिन ये ऑंखें बोल देती... Hindi · कविता 121 Share कुमार अविनाश केसर 2 Sep 2022 · 1 min read अक्षर बीज अक्षर बीज ======== विचार! ज्यों बहती नदी सधार! पत्थरों के पंख पर- चढ़ दौड़ी जैसे नदी! अक्षुण्ण! अजस्र!! वेगवती!!! वाक्य! हिलते-डुलते शब्दों का गठबंधन! तह पर तह ढाली गई नींव!... Hindi 1 130 Share Previous Page 2