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जिंदगी का यह दौर भी निराला है
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हर मंदिर में दीप जलेगा
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पल भर फासला है
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जुबां दिल किसको बायां करो।
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उम्र निकल रही है,
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किस्मत का कनेक्शन
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उम्र का दौर निकलता जा रहा है
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की कभी हमे भी बुला लिया करो
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एक घर था 1
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हर एक शाम उनका नाम याद आता है
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हम अकेले थे
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नफरतों के शहर में
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समझाने वाले बहुत आए
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मन भी व्याकुल तन भी व्याकुल
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तिरंगा
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इश्क का जाम
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कल वो किसी और के होगे
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यह कैसा एहसास है
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हवाओं को क्या पता
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अपनापन
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सालो लग जाती है रूठे को मानने में
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हिंदुस्तान में जन्मा हिंदू हूं
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लोकतंत्र का गला घुटा है
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किस्मत में जो है वो मिल ही जायेगा
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कब तक बैठोगे खाली कुछ तो काम करोगे तुम
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अम्बर भी नीला है
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अंधेरों में खोजा जिसे वो उजालों में कहा है
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बेरंग सी जिंदगी में अब रंग भर रहा हूं
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तन को पता नही अब मन भी गया है भूल
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निगाहें जमी पर है
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दोहा
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