Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
7 Sep 2018 · 1 min read

स्वयं ज्योति जली कब जलाए बिना?

गम से लड़ने को आतुर हो क्यों इस तरह?
गम मिटता है कब मुस्कुराये बिना?
ज़िन्दगी में चटक रंग कब हैं भरे ,
सोये अरमान के कुलबुलाए बिना,
एक तारा कभी टूटता ही नहीं,
दूर आकाश में खिलखिलाए बिना,
प्यार का अर्थ आता समझ में नहीं,
आँख में अश्रु के छलछलाए बिना,
हम इधर मौन हैं तुम उधर मौन हो,
बात कैसे चलेगी चलाए बिना?
लाख परदे गिराकर रखो ओट में,
रूप रहता नहीं झिलमिलाए बिना,
शब्द के विष बुझे बाण जब भी चुभे,
कौन सा दिल बचा तिलमिलाए बिना?
वे बहारें भी किस काम की हैं भला?
जो गईं फूल कोई खिलाए बिना,
स्वप्न आकार लेगें भला किस तरह?
हौसलों को अगन में गलाए बिना,
दीप को वर्तिका से मिलाए बिना,
स्वयं ज्योति जली कब जलाए बिना?

Loading...