मुक्तक
उनके माथे पर तो अक्सर, पत्थर के ही दाग रहे,
जो आम, इमली ,अमरूदों, के पेड़ों वाले बाग़ रहे,
उन कदमों को कोई पर्वत या नदियां क्या रोकेंगी?
जिनकी आँखों में सागर , सीने में जलती आग रहे।
उनके माथे पर तो अक्सर, पत्थर के ही दाग रहे,
जो आम, इमली ,अमरूदों, के पेड़ों वाले बाग़ रहे,
उन कदमों को कोई पर्वत या नदियां क्या रोकेंगी?
जिनकी आँखों में सागर , सीने में जलती आग रहे।