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5 Sep 2018 · 1 min read

साँस साँस चंदन हो गयी

साँस साँस चंदन हो गयी

मैं! नीर भरी कुंज लतिका सी
साँस साँस महकी चंदन हो गयी
छुई अनछुई नवेली कृतिका सी
पिय से लिपटन भुजंग हो गयी!

अंगनाई पुरवाई महके मल्हार सी
रूप रूप दर्पण सी मधुबन हो गयी
प्रियतम प्रेम में अथाह अम्बर सी
हिय प्रेम राधा सी वृंदावन हो गयी!

गात वल्लरी हिल हिल हर्षित सी
तरूवर तन मन पुलकन हो गयी
मैं माधवी मधुर राग कल्पित सी
मोहनी मूरत सी मगन हो गयी!

अनहद नाद सी उर की यमुना सी
मन तृष्णा विरहनी अगन हो गयी
भीगी अलकों की संध्या यौवना सी
दृग नीर भरे नैनन खंजन हो गयी!

मैं! विस्मित मौन विभा के फूल सी
बूंद बूंद घन पाहुन सारंग हो गयी
बिंदिया खो गयी मेरी सूने कपोल
साँसों से महकी अंग अंग हो गयी!

—–डा. निशा माथुर(स्वरचित)

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