मुक्तक
स्वार्थ का सुख और है, सेवा का सागर और है,
आदमी के नाम का इक क़र्ज़ हम पर और है,
अपने आँगन में दिया रखने से पहले ध्यान दो,
बीच की दीवार के उस पार इक घर और है।
स्वार्थ का सुख और है, सेवा का सागर और है,
आदमी के नाम का इक क़र्ज़ हम पर और है,
अपने आँगन में दिया रखने से पहले ध्यान दो,
बीच की दीवार के उस पार इक घर और है।