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30 Aug 2018 · 1 min read

?हे कान्हा?

कान्हा कर दो ये उपकार, तुम हो जग के पालन हार,
इंसान तो तेरी माया, प्रभु समझ नहीं पाया,
तुझसे ही है कान्हा जग में धूप हो या हो छाया,
इंसान खुद पर है इतराता, सच शायद वो समझ न पाता,
तुम हो वही रचयिता रचा है जिसने ये संसार,
कान्हा कर दो ये उपकार, तुम हो जग के पालन हार,
नासमझ इंसां है अकड़ा , मोह जाल में है जकड़ा,
जाने कैसी उलझन ने जीवन को है धर -पकड़ा,
भ्रमित मति सुधर जाए, तेरी छवि मन मे बस जाए,
कर दो कृपा मुरारी मुझपे , बिगड़ी मेरी बन जाये,
कान्हा कर दो ये उपकार, तुम हो जग के पालन हार।

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