मुक्तक
तेरे रहमोकरम पे जो अंधेरे तलघरों में थे,
यक़ीनन रोशनी में आ गए अख़बार के चलते,
ज़मीनी साज़िशों के और ऊपर की सियासत के,
मुसलसल बीच में पिसते रहे घर-बार के चलते।
तेरे रहमोकरम पे जो अंधेरे तलघरों में थे,
यक़ीनन रोशनी में आ गए अख़बार के चलते,
ज़मीनी साज़िशों के और ऊपर की सियासत के,
मुसलसल बीच में पिसते रहे घर-बार के चलते।