मुक्तक
आज समय को उत्तर देना ही होगा सिंहासन को,
चीरहरण की कौन इजाजत देता है दुशाशन को,
न्याय-व्यवस्था निर्णय करने में मजबूर क्यों दिखती है,
इनकी गर्दन फाँसी के फंदों से दूर अभी क्यों दिखती है।
आज समय को उत्तर देना ही होगा सिंहासन को,
चीरहरण की कौन इजाजत देता है दुशाशन को,
न्याय-व्यवस्था निर्णय करने में मजबूर क्यों दिखती है,
इनकी गर्दन फाँसी के फंदों से दूर अभी क्यों दिखती है।