मुक्तक
धुंधला पड़ा है आइना भी अब,
नहीं अक्स कोई भी ज़हन में ,
वो करने आये तब इज़हारे उल्फ़त ,
बदन लिपटा हुआ था जब कफ़न में ।
धुंधला पड़ा है आइना भी अब,
नहीं अक्स कोई भी ज़हन में ,
वो करने आये तब इज़हारे उल्फ़त ,
बदन लिपटा हुआ था जब कफ़न में ।