मुक्तक
” शहीदों की चिताएँ तो वतन की आरती सी हैं,
उठती लपटें किसी नागिन-सदृश फुफकारती–सी हैं ,
चिताओं की बुझी हर राख गंगा-रेणु सी लगती,
निहत्थी अस्थियाँ भी शस्त्र की छवि धारती-सी हैं “
” शहीदों की चिताएँ तो वतन की आरती सी हैं,
उठती लपटें किसी नागिन-सदृश फुफकारती–सी हैं ,
चिताओं की बुझी हर राख गंगा-रेणु सी लगती,
निहत्थी अस्थियाँ भी शस्त्र की छवि धारती-सी हैं “