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13 Jul 2018 · 1 min read

नारी

लगाया जो कलम पर जोर, तो कलम भी टूट जाएगी।
बयां कर दूं गुनाह तेरे, इंसानियत रूठ जाएगी।।
बलात्कार होते रहे यूं ही, एक दिन धरती फट जाएगी।।
जला दी एक मसाल मैने, जो अब जनक्रांति लाएगी।।

यह वेदना है नारी की, रद्दी नही अखबार की।
यह भूखी है इंसाफ की, प्यासी लहू की धार की।।

यह जगत जननी मां दुर्गा है, रणचंडी मात भवानी है।
यह सीता और सावित्री है, यह झांसी वाली रानी है।।

यह पन्ना सी सच्चाई है, पदमनी सम बलिदानी है।
यह कर्णावती सी ज्वाला है, यह देवी हाड़ी रानी है।।

यह इंदिरा सी तरूणाई है, यह कल्पना की उड़ान है।
जो नोंच रहा है देह गिध्द सा, वह मानव नही शैतान है।।

यह देवों की भी जननी है, ये तेरी मेरी भगिनी है।।
यह शीतल है सम चंदा सी, यह ज्वाला है ये अग्नि है।।

जन्म दिया है जिसने जग को, वही अबला बेबस नारी है।
जो मां बेटी भगिनी बनी, आज उसी के संग गद्दारी है।।

नोच रहे आंचल नारी का, नर नही पशु हैवान है।
उठने वाली आंख फोड़ दो, अब ये मेरा फ़रमान है।।

ऐसे नर पिसाच शैतानों को, केवल फाँसी ही अंजाम है।
अब सम्मान मिले नारी को, मेरा यह पैगाम है।।
✍?सिद्धांत सिंह’ ‘सिद्दू’

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