“रस का सागर”
“रस में डूबे शब्दों से जो,सबके भाव जगाते हैं,रस क्या हैं निज रचना से, जो इसका बोध कराते हैं, कुछ पल की मोहलत में ही,सब कुछ जो कह जाते हैं, कविताओं से समाँ बांध,मन पुलकित कर जाते हैं,कवि वही कहलाते हैं,कवि वही कहलाते हैं,
प्रेम और सौंदर्यता का वर्णन कुछ ऐसे कर जाते हैं,शब्दों से भावों का प्रत्यक्ष रूप दर्शाते हैं,रचना की धारा में कवि जब श्रृंगार रस टपकाते हैं,
हँसते हँसते आँसू निकले ठहाकों की गूँज मचाते हैं,
हास्य कवि अपनी कविता जब-जब मंचों से सुनाते हैं,
वियोग की कुछ बातें होती,करूणा रस बरसाते हैं,
सुख दुःख जीवन का संगम है,करुण रस से समझाते हैं,
क्रोध विनाश का कारण है, युद्ध निमंत्रण आते हैं ,
रौद्र रस में वर्णित रचना से कवि यही दिखलाते हैं,
उत्साहित कर दे मन को ऐसी,वीरों की गाथा बतलाते हैं,
देशभक्ति भाव की गंगा शब्दों में बहाते हैं,कुछ बेहतर कर जाने को उत्प्रेरित जो कर जाते हैं,कवि वही कहलाते हैं, कवि वही कहलाते हैं,
बात हुई ये कवियों की कवयित्री हैं क्या झलक दिखाते हैं,
कुछ शब्दों की माला से इनको परिभाषित कर जाते हैं,
कुछ कहकर कुछ बिना कहे,मुख भाव से जो समझाती हैं, इक छोटी सी रचना में ही हर रस का स्वाद चखाती हैं, शब्दों की अमृत वर्षा से मन रोमांचित कर जाती हैं,
क्षण क्षण परिवर्तित भावों को मुखमंडल से दर्शाती हैं,
श्रोता के दिल तक पहुँचे जिनकी हर इक बात कही, शोर सभी थम जाते हैं जब अपने स्वर सुनाती हैं, कई बार आरोपों की चट्टानें मुस्कान से काट गिराती हैं,वो कवयित्री कहलाती हैं।”