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23 May 2018 · 2 min read

"विस्तार लिखो गीतों में"

“आज कहती हूँ मेरा यह वंदन सुन लो, धैर्य धरकर जरा वक़्त की धड़कन सुन लो,
तुमने कई बार है श्रृंगार लिखा गीतों में,तुमने कई बार बहुत प्यार लिखा गीतों में,आज अपनी कलम में ज्वाला भर लो,देश के हालात शब्दों में कर लो, बिगड़े क्यों संस्कार लिखो गीतों में, दहकती परिस्थितियों के अंगार लिखो गीतों में ,
आत्ममंथन से निकली अमृत है कविता,विचारों की बुनियाद से निर्मित है कविता,कवि तो देश की तस्वीर लिखा करते हैं,कभी ये लोगों की तकदीर लिखा करते हैं,कई बार डोल उठते हैं सिंहासन, शब्दों के वो प्रहार लिखा करते हैं,धार तलवार सी हो वो वार लिखो गीतों में , दहकती परिस्थितियों के अंगार लिखो गीतों में
जिन लोगों ने सौदा कर दिया वतन का भी,माँ के आँचल, शहीदों के कफन का भी,कौन है वो गद्दार लिखो गीतों में,दहकती परिस्थितियों के अंगार लिखो गीतों में,
हमारी एकता को जिसने किया है खंडित,धर्मों की ज्वाला में प्रेम को कर डाला अर्पित,नफरत की आंधियां चला किया सब कुछ विचलित,देश की गरिमा कर रहे हैं प्रभावित,विचार उनके ये मिट जाए वो हुंकार लिखो गीतों में,दहकती परिस्थितियों के अंगार लिखो गीतों में,
तुम्हारे घर जला रोशन जो अपना शहर करते,देकर दर्द तुम्हे खुशियों से अपना घर भरते,अपने खौफ़ से झुकाना चाहते हैं जो कलम को, उन्हें समझाने को कलम की शक्ति का भंडार लिखो गीतों में, दहकती परिस्थितियों के अंगार लिखो गीतों में,
गिरेगी फूट की दीवार लिखो गीतों में,एकता देश की है अपनी बंद मुट्ठी सी,न होने देंगे कामयाब वो ललकार लिखो गीतों में,तुमने कई बार बहुत प्यार लिखा गीतों में,दहकती परिस्थितियों के अंगार लिखो गीतों में ”

समर्पित- आदरणीय कुमार जी को………

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