“वही वीर कहलाते हैं”
“धरती अंबर भी झूम उठे,जब वीर धरा पर आते हैं,
अंधकार को चीरने वाली,नई किरण वो लाते हैं,
विरले होते बचपन से ही, स्वर्णिम इतिहास बनाते हैं,कर्म पथ पर गिरकर भी,फिर से जो उठ जाते हैं
वही वीर कहलाते हैं,
वीरों की गाथाएं सुन,हम गौरवान्वित हो जाते हैं,
जब चौपालों में बैठे सब,वीरों की बात बताते हैं,
जीवन सरल न होता उनका,मुश्किल को सरल बनाते हैं,निज स्वार्थ से ऊपर उठकर जो,औरों के लिए कुछ कर जाते हैं,अपने परायों का भेद न करते,सबको गले लगाते हैं,परोपकार में जीवन अपना,न्योछावर कर जाते हैं,वही वीर कहलाते हैं,
डर भी जिनसे कांप उठे, दुश्मन देख जिन्हें थर्राते हैं,सीने पर जो वार सहे,जंग में ना पीठ दिखाते हैं,नाम वतन का रोशन करते ,वहीं वीर कहलाते हैं,
कल कल बहती नदी से निर्मल,कभी झरने की गिरती धारा से,सागर की लहरों सी उमड़ते,कभी बिखरे फव्वारा से, अविचल होकर समय से लड़ते,मनोबल से चट्टान हिलाते हैं ,स्वयं को चुन पथ कंटक का,पुष्पों से औरों की राह सजाते हैं,जटिल समस्या को धैर्य में रहकर,शांतिपूर्ण जो सुलझाते हैं,वहीं वीर कहलाते हैं”