“वो नारी है “
“अग्नि की उठती ज्वाला सी,कभी ढलते सूरज की लाली है,
ममतामयी माँ दुर्गा सी,कभी रुद्र वो चंडी काली है,
अबला कहते हो उसको, जो दैत्यों पर भी भारी है,
हर वीर को जिसने जन्म दिया,वीरांगना वो नारी है,
कभी रजिया सुल्ताना सी कभी लक्ष्मीबाई बन जाती है, गृहलक्ष्मी है वो कोमल सी,कभी जंग में तलवार चलाती है,
मां बहन के रूप में मिली तुम्हें,कोई औरत तेरी घरवाली है,
कोई दरवाजे की मर्यादा में,कोई मर्दन करती शेरावाली है,
हुआ विनाश उन सबका जिसने बुरी निगाहें डाली है ,
रावण हो या महिषासुर,या रहा कोई शक्तिशाली है,
चुप रह कर वो सहती है तो, अबला नहीं समझ लेना,
निगलने की क्षमता है उसमें,बेहतर हो पहले संभल लेना,
नहीं कम है वो तुमसे, है उसमें उद्गार भरा, हर नारी के अंदर शक्ति का भंडार भरा,
नारी ही है जो पुरूषों का अस्तित्व बनाती हैं,
माँ स्वरूप पर जिसके पूरी दुनिया शीश झुकाती है,
रस भर देती जीवन में कभी कभी मधुशाला सी,
कभी पतन कर देती है,धरती से उगलती ज्वाला सी
निज सम्मान के खातिर,अग्नि परीक्षा तक दे डाली है,
सती सावित्री जिसने यम से भी अपनी बात मना ली है, विभिन्न रूपों में खुद को ढाले, मूर्तिकार वो नारी है, अबला कहते हो उसको,जो दैत्यों पर भी भारी है,
हर वीर को जिसने जन्म दिया,वीरांगना वो नारी है।”