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11 May 2018 · 1 min read

आदमी का जिस्म.....

आदमी का जिस्म है जो,
इससे ही बनता जहाँ।
नहीं हैं ये चिरस्थायी,
सबको मिटना हैं यहाँ
आना -जाना हैं ये क्रम,
जिंदगी भी है एक भ्रम।
किस क्षणिक ये भ्रम टूटे,
कोई नहीं ये जानता।
मौत की पुरजोर आँधी,
जिस समय टकराएगी।
जिस्म रूपी ये इमारत,
फिर खाक में मिल जायेगी।

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