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30 Mar 2018 · 1 min read

बदलने लगी हूं मैं

हां, बस अब थोड़ा सा बदलने लगी हूं मैं,
खुद से ही खुद के सांचे में ढलने लगी हूं मैं
:-अपनेपन के झुठे एहसास से बुझा दिया,
था मुझे उसने राख की मानिंद,
पर अब फिर से अपने
कर्मपथ पर ज्वाला सी जलने लगी हूं मैं।
हां, बस अब थोड़ा सा बदलने लगी हूं मैं।।
:-मेरी हर आस हर उम्मीद को उसने अपने कदमो तले कुचल सा दिया,
ठोकर इतनी जबरदस्त लगी कि
पथरीले रास्तों पर हंसकर चलने लगी हूं मैं।
हां, बस अब थोड़ा सा बदलने लगी हूँ मैं।।
:- उन चंद लोगों के इशारों तक रह गयी है जिन महफ़िलो की रौनके,
उन महफ़िलो को “मलिक”
बहुत दूर से ही सलाम अब करने लगी हूँ मैं।
हां, बस अब थोड़ा सा बदलने लगी हूं मैं।।
:-उतारकर पागलपन उसकी मोह माया का
देख “सुषमा” उस हद वाला
खुद से ही वो प्यार अब करने लगी हूं मैं।
हां, “मलिक” थोड़ा सा बदलने लगी हूं मैं।।

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