भूमिपुत्र
खेतिहर ,किसान,या भूमिपुत्र
ताप हो या सर्दी जड़ा भूमिपुत्र हल लेकर चलता है,।
आँधी आये या आये तूफ़ा खेतिहर अपने
खेतों मे बीज बोता है।
झर झर बारिश आये तो भी भींगने से नही डरता है,।
एक जून की रोटी खातिर किसान बेजोङ मेहनत करता है।
खून पसीना बहा बहा कर अपनी फसल को संवारता है।
फिर जग इसकी मेहनत कि लागत को कम क्यों हाँकता है।
नही आती जब बारिश सब किया धरा चोपट हो जाता है।
नही आती दया किसी को जब किसान लहू के अश्क बहाता है।
कर्ज का जब जब भार बढ़ता अन्नदाता फाँसी पर झूलता है।
अकाल पढ़ने से फ़सल नही पकती तब तब किसान मरने को मजबूर होता है।
दर दर ठोकर खाता किसान गरीब और लाचारी में।
तब तब आ जाते है घर किसान के साहूकार वसूली में।
छम छम बारिश में भी दौड़ दौड़ कर हलवाहा काम करता है।
साँझ ढले तब घर को वो रोटी खाने देहरी पर दस्तख़ देता है।
भोर होते ही लिये बैलो को खेतों की ओर बढ़ता है।
देखो दुनिया वालों कृषक कितना मजबूर होता है।।
अपने हक के लिए मैदान ए जंग में किसान जब उतरता है।।
पुलिस की गोली बारी का शिकार देखो
हलधर कैसे सहता है।।
खाकर सीने पर पत्थर गोली अपने हक लिए सरकार पर धावा बोलता है।
सोनू सोचती है सबको अन्न देने वाले अन्नदाता का क्यों ऐसा अनादर होता है।
कितने अरमानों को दिल मे लिए किसान जीवन जीता है।
बाल बीवी और बच्चों की सब मांगे पूरी करता है।।
खुद पहने फटे पुराने वसन और अपनो को सब खुशियां देता है।।
घर परिवार की खातिर किसान देखो कितने दुख दर्द सहता है।।।।।
अपने पेट को मार मार कर धन संपदा जोड़े करता है।।
जाएगी मेरी बिटिया रानी ससुराल बस दिन रात यही सोचता है।।।
अपने कलेजे के टुकड़े खातिर चौबीस पहर वो मेहनत करता है।।
देखो सोनू किसान अपने और जग के लिए कितना भला सोचता है।।।
रचनाकार गायत्री सोनू जैन
सहायक अध्यापिका मंदसौर
मोबाइल नंबर 7772931211
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