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2 Mar 2018 · 1 min read

होली की कथा

हमारी पौराणिक कथाऐं कहती हैं

होली की कथा निष्ठुर ,

एक थे भक्त प्रह्लाद

पिता जिनका हिरण्यकशिपु असुर।

थी उनकी बुआ होलिका

थी ममतामयी माता कयाधु ,

दैत्य कुल में जन्मे

चिरंजीवी प्रह्लाद साधु।

ईश्वर भक्ति से हो जाय विचलित प्रह्लाद

पिता ने किये नाना प्रकार के उपाय,

हो जाय जब विद्रोही बेटा

बाप को पलभर न सुहाय।

थे बाप-बेटे में मतभेद भारी

कहता बाप स्वयं को भगवान् ,

रहे झेलते यातनाऐं प्रह्लाद सदाचारी

अनाचार को नहीं की मान्यता प्रदान।

रार ज़्यादा ठनी जब

ख़्याल अपना लिया भयंकर हिरण्यकशिपु ने,

बुलाया बहन होलिका को

प्रह्लाद को मारने।

ब्रह्मा जी ने दिया था

होलिका को वरदान,

आग तुम्हें न जला सकेगी

जब करोगी कार्य महान।

लेकर बैठ गयी ज़बरन प्रह्लाद को चिता पर

छीनकर माँ से उसके दुलारे को ,

माँ चीख़ती रही बे-बस

खोला होलिका ने दुष्टता के पिटारे को।

नाम लेते रहे प्रह्लाद प्रभु का

भस्म हो गयी होलिका,

बचा न सका वरदान भी

होता नहीं यत्न कोई प्रमाद की भूल का।

सकुशल निकले भक्त प्रह्लाद

प्रचंड चिताग्नि से

आओ होली मनाऐं भर-भर उल्लास

विमुक्त हों चिंताग्नि से।

आओ जला दें आज अहंकार अपने

खोल दें उमंगों को जीभर मचलने।

# रवीन्द्र सिंह यादव

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