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28 Feb 2018 · 1 min read

बीती बातें

बीती बातें याद न कर
जी में चुभता है नश्तर

हासिल कब तक़रार यहाँ
टूट गए कितने ही घर

चाँद-सितारे साथी थे
नींद न आई एक पहर

तनहा हूँ मैं बरसों से
मुझ पर भी तो डाल नज़र

पीर न अपनी व्यक्त करो
यह उपकार करो मुझ पर

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