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27 Feb 2018 · 1 min read

हकीकत

जब भी मैं समझता हूँ
बड़ा हो गया हूँ
अदना आदमी से
खुदा हो गया हूँ

तो इतिहास उठा लेता हूँ
ये भ्रम खुद-ब-खुद टूट जाता है
मौत रूपी दर्पण में
सत्य का प्रतिबिम्ब दिख जाता है

मिटटी में मिल गए
जितने भी थे धुरंधर
क्या हलाकू-चंगेज
क्या पोरस-सिकंदर

जिन्होंने कायम की थी
पूरी दुनिया में हुकूमत
कहीं नजर आती नहीं
आज उनकी गुरबत

तो ऐ महावीर तुझे
घमंड किस बात का!
दुनिया-ए-फ़ानी में
भला तेरी औकात क्या?

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