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6 Feb 2018 · 1 min read

कुछ करो सुधार

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भले कर्म अनमोल हैं बन्धु,
बुरे कर्म सब मिट्टी-धूल।
प्रभु के हाथ सब लेखा-जोखा,
वह सब कर लेता है “वसूल”।।
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नेकी का तुम सदा साथ दो,
बदी को नष्ट करो समूल।
जैसे दुष्टों का है संहारक,
भोले नाथ का प्रिय “त्रिशूल”।।
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आम कहां पाओगे भैया,
जब खुद ही बोओगे बबूल।
भला चाहो तो भला करो सदा,
यही है बात का असली “मूल”।।
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हुई त्रुटि तो मांग ली माफी,
बड़े सदा जो रखें ये उसूल।
छोटों से भी करें क्षमायाचना,
अहंकार करें कभी न “भूल”।।
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बात समझ की करो मेरे बंधु,
ना करना तुम बातें फिज़ूल।
दूजों के दोष तुम तभी गिनाना,
जब खुद की कमियां करो “कबूल”।।
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रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
# साहित्य_सागर

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