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4 Feb 2018 · 1 min read

समाज कल्याण,एक मत्रांलय

एक अदद मत्रांलय है,
जिसका नाम है समाज कल्याण,
जहाँ नितियां तो तय होनी थी,
हर समाज के लिये,
पर प्राथमिकताएं,आरक्षित हैं,
कुछ ही समुदायिक समाज के लिये,
जी हाँ,आज हर जाति,धर्म का,
अपना समाज है,
खून,रिती रिवाज,बोली भाषा,
सबके मिलते जुलते हैं,
और आस्था भी,एक सर्वशक्ति मान पर केन्द्रित है,
किन्तु मानसिकता मे भेद है,
यह बात और है कि,
हमारे जनप्रतिनिधियों का कथन,व सोच,
माहोल व स्थान के हिसाब से बदलते रहते हैं,
आपने सुना या पढा तो होगा ही,
संसद मे ये सभी आरक्षण पर एक मत हैं,
यानि की सहमत हैं,
किन्तु सडकों पर व जनता के मध्य,
इनकी राय और भाषा विभक्त है,
ऐ सविंधान निर्माताओ ,अब तो चेतो
भाई भाई में छिडी है जगं,
उसे तो रोको,
आज आवश्यकता है,हर नव युवक को रोजगार की,
युवक चाहे वह किसी भी जाति धर्म का हो,
जाति के नाम पर कोई कई लाभ है उठाते,
कुछ हैं जो कुछ भी नहीं पाते,
क्यों न एक राष्टीय रोजगार बोर्ड,बना दो,
हर युवक की सेवा को अनिवार्य करा दो,
रोजगार भी मानवाधिकार हो,
चयन प्रक्रिया योग्यता पर निर्भर हो,
योग्यता के अनुरुप कार्य हो,
तभी गुणवता में निखार आयेगा,
और वर्ग भेद भी मिट जायेगा।

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