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28 Dec 2017 · 1 min read

“गज़ल”

“गज़ल”

बैठिए सर बैठिए अब गुनगुनाना सीख ले
हो सके तो एक सुर में स्वर मिलाना सीख ले
कह रही बिखरी पराली हो सके तो मत जला
मैं भली खलिहान में छप्पर बनाना सीख ले॥

मानती हूँ बैल भी अब हो गए मुझसे बुरे
चर रहें हैं खेत बछड़े, हल चलाना सीख ले॥

खाद देशी खो गई फसलों में फैली यूरिया
गुड़ का गोबर हो रहा है कुछ कमाना सीख ले॥

देख लिजे आँख से रुकती हुई हर साँस है
हाथ मल चलती सड़क जीवन बचाना सीख ले॥

लड़ रही है बहक गाडियाँ बिन युद्ध की रफ्तार है
दिन ढ़का दिखता नहीं है ढंग पुराना सीख ले॥

मत उड़ो आकाश में जी अब निभाते वे नहीं
जी के जोखिम पालतू से घर खिलाना सीख ले॥

आप भी “गौतम” सरीखे लग रहें इंसान हैं
जल गया वह दिल नहीं था फिर लगाना सीख ले॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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