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24 Nov 2017 · 1 min read

खामोशी एक ही सवाल पूछती है

खामोशी एक ही सवाल पूछती है
तन्हाई में क्यों तन्हा छोडती है

बसी है जब ख़्वाबों में मेरे
दूर होकर क्यों हाल पूछती है

जिंदा लाश है अब ये जिस्त
क्यों अब आबाद सोचती है

अब समुन्द्र है आँखों में मेरे
क्यों इसे मीठा आब सोचती है

राख हो गया जिस्त आग में
क्यों रोशन जहां सोचती है

अभी तो आगाज़ हैअसफ़ार का
क्यों मंजिल का अंत सोचती है

जहर नही अमृत है ये शराब
क्यों इसे खराब सोचती है

आदत है ,इबादत है वो मेरी
क्यों हर बार इस्बात पूछती है

इस्बात= प्रमाण, साक्ष्य, सबूत

भूपेंद्र रावत
24/11/2017

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