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10 Sep 2017 · 1 min read

#गुरुग्राम रेयान हत्याकांड

गुरुग्राम के 7 वर्षीय अबोध की हत्या के विरोध में उपजे ‘तेज-जहरीले मनोभाव।’
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गुरूग्राम को किया कलंकित, शिक्षा की इक शाला ने।
एक चिराग बुझाया फिर से, वहशी गड़बड़झाला ने।
शर्म-लिहाज रही न उर में, क्या विक्षिप्त समाज हुआ?
अब तक देखा नहीं सुना था, जैसा प्रकरण आज हुआ।।
बेमतलब इक कोख उजाड़ी,इक कुलदीपक बुझा दिया।
सवा अरब की आबादी का, मस्तक नीचे झुका दिया।
अरे नीच-पापी कुविचारी, वह अबोध-सा बालक था।
और तू बूढ़ा-सांड हरामी, देशद्रोहि कुल-घालक था।
काम-पिपासू शैतानो कुछ, तो सोचा समझा होता।
आज एक परिवार आँख के, तारे को तो ना खोता।
वहशत की नंगई न सोचा, तुम्हें कहाँ ले जायेगी?
हत्या की परिवार सहित ये, मौत तुम्हें नित आएगी!
अरे कलंकी क्रूर दरिंदो, वहशी मन समझा लेते।
इतनी ही गर आग लगी थी, कर-संधान करा लेते।
नीच हवस के वहशी कीड़ो, विष्ठा ही गर खानी थी!
वेश्या के कोठे पर जाकर, तन की आग बुझानी थी!
किया कलंकित तेज हिन्द का, अंग्रेजी परिपाटी ने!
अहो जने क्यों नर-पिशाच इस, शस्य-श्यामला माटी ने?
यथायोग्य हो जाँच यथोचित, जो दोषी हों सजा मिले।
पुनरावृत्ति न हो ऐसी फिर, नहीं कलंकित फ़िजा मिले!

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?तेज✏मथुरा✍

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