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5 Sep 2017 · 1 min read

प्रकृति

शिखरिणी छंद ।

सघन वन ।
खोते अस्तित्व ।
भीगे नयन ।।

कैसे हो वर्षा ।
खत्म होते पेड़ ।
मन तरसा ।।

हमें है लोभ ।
तभी तो काटे वृक्ष ।
नहीं है शोक ।।

न छेड़ मुझे ।
प्रकृति हूँ,जीवन ।
देती हूँ तुझे ।।

पूछती नानी ।
पानी कहाँ से आये ।
सूखी हिमानी ।।

आरती लोहनी

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