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8 Aug 2017 · 1 min read

चमका फिर से सूरज नवीन

धरती को करने तम-विहीन
चमका फिर से सूरज नवीन

उल्लास लिये संचरित हुए
गतिमय शनैः फिर त्वरित हुए
मानव, खग-मृग, पशु, विटप, मीन

चमका फिर से सूरज नवीन

किलकारी भरते नौनिहाल
गाते पंछी स्वर मधुर ताल
दोनों सुर-संगम में प्रवीन

चमका फिर से सूरज नवीन

शैशव, यौवन, वृद्धावस्था
है सुबह दोपहर शाम यथा
हर दिन के होते खण्ड तीन

चमका फिर से सूरज नवीन

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