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22 Jul 2017 · 1 min read

बदलता गांव

कहां है गांव की वाे मिट्टी,
कहां हैं बचपन की कट्टी,

कितना बदल गया गांव,
अब नही बची काेई छांव,

नही रहे वाे मनुज,
नही दिखते अनुज,

नही लगती वाे चाैपाटी,
चले गये सब सहपाटी,

गलियाे के कीचड़ सूख चुके,
अब वाे तीज त्याैहार बीत चुके,

पेड़ाे की डाली सूनी हिले,
कहां गये वाे सावन के झूले,

अब नही रहा लाेगाे का मन चंगा,
नही दिखता हमारा वाे अष्टाचंगा,

दिल में खिची है गांव की लकीरे अमिट,
घर आंगन चाैक चाैराहे सब गये सिमट,

सब भूल चुके अपना फर्ज,
गा रहे अपना राग बिना तर्ज,

जहां देखाे वहां हाे रहे दंगे,
घूम रहे उनके बच्चे नंगे,

गली गली बनी राजनीति का अखाड़ा,
अब सीख रहे हैं सब उनका ही पहाड़ा,

रिश्ते नाते भाई चारा सब टूट चले,
प्रेम रूपी जहाज किनारा छाेड़ चले,
।।जेपीएल।।।

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