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13 Sep 2016 · 1 min read

भाव भंगिमा

मूक हूँ मैं, मौन हूँ मैं,
मुझको तू जुबान दे,,,
देखकर बस भाव भंगिमा,
मुझमें तू जाँ डाल दे,,,
दे नये आयाम इस चित्र को तू,
मूक सी इस छवि को दास्तान दे “”
दिखाकर मुझे दरपन लफ्जों का,
मुझको ही मेरी पहचान दे “”,,,
चाहूँ बस कुछ तवज्जो तेरी,,
ना तू मुझे पूरा जमीं आसमान दे,,,,,
बस थम जा कुछ देर
यही,अरमानों को मेरे इक नया जहान दे
उकेर कर इबारत पत्थर पर,
शब्दों से कुछ निशान दे,,,
बेजान सी पङी लाश को,
जिंदगी जीने का सामान दे,,,,
बन ना जाये स्याही जीवन की
इसको नूतन नाम दे
अनवरत जारी है कविता
रोककर तू विराम दे

नूतन

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