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20 Jul 2017 · 1 min read

मेरे श्रद्धेय (कविता )

मेरे श्रद्धेय !
मेरे आदरणीय !
तुम पर प्रेम निस्सार है।

यह अमूल्य रत्न,
यह सभी सृजन ,
इन पर तुम्हारा ही अधिकार हैें।

तुम रहो चाहे जहाँ ,
यहाँ नहीं तो वहां ,
यह ह्रदय करता सदा पुकार हैें।

तुम्हारा मृदल स्वर ,
गीत-पुष्पों से भरे अधर ,
सुख देते मुझे अपार हें।

तुम्हारे स्नेह का हाथ ,
तुम्हारे गीतों का साथ ,
यह मेरे संघर्ष का औजार हैें।

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