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19 Jul 2017 · 1 min read

बाज़ार

बाज़ार
प्रीत रही नहीँ शेष यहां पर कामुक हुआ श्रृंगार,
बात बात में कर रहे, बन्धु बांधव अविवेक तकरार।

छल कपट, झूठ फरेब पर टिका रिश्तों का आधार
बहन बेटियों की अस्मत निस लुट रही बीच बाज़ार।

दिलों में तम अंधकार है, घुटा जाता जीवन सँचार
जीवन हीन सब व्यथित यहाँ, सेवा भावना जाती हार।

लाशों का होता मोल भाव यहां, है चमक रहा व्यापार
मुख मेकप से किए चिकने, पेट भूख से रहा पुकार।

घर में तो दाने नहीं और बनते साहूकार
दिखावे की जिंदगी को सभी करते प्यार।

अकबक कुछ भी लिख रहे, लगा लिया अर्थ हीन अंबार
कोपी पेस्ट करें पटल पर,साहित्यिक चबली-चोर-चकार।

हाय!लुप्त होते जा रहे उत्तम रचनाकार,
अर्थ-निरर्थ का बन गया फेसबुक बाज़ार।

देखो क्यों अशआर हुए प्राणहीन और कमज़ोर
काव्य-साहित्य के नाम पर, मचा है कर्कश शोर।

बेसुध पड़ी बाज़ार में कविता,
लूटते तथाकथित कवि लोग।
कविताएं अब हलवा बनीं,
हर कोई लगा रहा भोग।

तुम नीलम बिना अर्थ के कभी लिखना न अशआर,
अकबग रचनाओं से पहले ही भरा बहुत बड़ा बाज़ार।

नीलम शर्मा

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